एक नेता ने इलाक़े में पुल बनवाया
ख़ूब शोहरत ख़ूब नाम कमाया
पर आज हम बताते हैं
नाम के साथ वो क्या क्या कमाते हैं
सबसे पहले मज़दूर रखे गए
नेता जी के पास थे
सबके नाम लिखे हुए
सब की मज़दूरी में
उनका हिस्सा था
दोस्तों बड़ा दुःख भरा ये क़िस्सा था
क्या हुआ अगर मज़दूरों के
बच्चे भूखे सो गए
नेताजी ने पैसे पत्तों में उड़ाए
उनके फ़ायदे तो जुए में भी हो गए
फिर लोहे की बारी आयी
भाई, कई सौ करोढ़ का
सरिया हुआ सप्लाई
थोड़ा हल्का है पर कोई ग़म नहीं
कमेटी से पास तो हो ही जाएगा
चलेगा बस ज़रा सा कम सही
गिर भी गया तो sabotage का बहाना है
या इस नयी technology में कोई दम नहीं
जब सिमेंट और रेत का बजट आया
तब उन्होंने तुरूप का इक्का चलाया
Engineer, क्लर्क और दरबान को
आगाह किया कि रखना अपनी शान को
कोई भी बिल ऐसे ही नहीं होगा पास
जब तक दस percent की नहीं होगी आस
ऊपर से
मज़बूत भी होना चाहिए ये पुल
उद्घाटन से पहले ना टूटे नेताजी का दिल
देखा….
इस तरह नेताजी ने भर ली अपनी तिजोरी
ना खुल्लामखुल्ला ना चोरी चोरी
जनतंत्र में फिर पड़ी जनता को मार
प्रगति की एक नदी बह तो रही है
पर मेरा महान भारत
ना इस पार ना उस पार
