साथ रहने की क़समें तो खायी थी
पर जन्मपत्री ना ठीक से मिलायी थी!
उम्मीद से ज़्यादा दहेज पाते ही
दुल्हन दूसरे boyfriend के साथ भाग आयी थी!
बरातियों को नयी दावत का न्योता दिया,
“Menu सही नहीं” ये कह उन्होंने लौटा दिया !
कई बार, बार बार यही सीन हुआ,
लगा कि दूसरा दूल्हा भी एक दो तीन हुआ!
ससुरजी का चढ़ गया पारा,
बारातघर में डाला ताला,
बच्चों तुम्हारा मुझसे पड़ा है पाला!
अब ये ताला खुलेगा तभी,
Support की जब चिट्ठियाँ मिलेंगी सभी!
बड़ी परेशानी में है बेचारी दुल्हन,
सुलझ ही नहीं रही ये उलझन!
कल “उनके” फूफा थे नाराज़,
मौसा का मुँह फूला है आज!
कैसे लाऊँ पूरब को पश्चिम के पास,
यही तो थे मेरी आख़री आस!
प्यार तो मुझे भरपूर ही है,
मौक़ा भी है और दस्तूर भी है !
डलवा दो प्रभु उनके गले में जयमाला
खुलवा दो इस बारातघरका ताला !