आओ कुछ दूर और चले
इन जंगली फूलों के बीच
रात भर बातें करे या
लेटें चुपचाप आँखे मींच
चलो फिर से खिलखिलाए
उन्ही अल्हड़पन की बातों पे
पर मज़बूती रहे कदमों में
जब तक है हाथ हाथों में
अनकहे शब्दों से समझे
दिल की धड़कन के इशारे
गर्म और सर्द
आने है अभी मौसम कई
चलो मिल कर देखें
बाक़ी जो है खेल सारे
गुनगुनायीं हैं कुछ ग़ज़लें
कुछ नज़्म अभी बाक़ी हैं
कुछ ख़्याल तेरे, कुछ अल्फ़ाज़ मेरे
हँस के जीने के लिए,
बस यही काफ़ी हैं