ज़रा धीरे चल ऐ ज़िंदगी कई हसरतों का बयान बाक़ी है! भँवर ने बहाने चाहे थे जो अभी उन घरौंदो का निशान बाक़ी है! बेशक़ पूरे हुए हैं ख़्वाब बेहिसाब पर अभी कुछ ख़ास मुक़ाम बाक़ी है! राजा रानी बन के खेले हैं खेल अभी किरदार-ए-ग़ुलाम बाक़ी है! अफ़सोस है रज़ामंदी पर बेइंतहा अभी अहमContinue reading “बाक़ी है!”