माँ कहाँ गयीं तुम?

उन रूहों से पूछो ग़म की कैसे निशानी बयान होती है?
जिनकी औलाद सिर्फ़ उनकी तस्वीर देख कर जवान होती है!
तुमको नहीं पता है माँ !
पर इन चौबीस सालो में,
अक्सर कमजर्फ ज़िंदगी से नयी सी पहचान होती है!

तुमने नहीं देखा है माँ!
पापा की आँखों का निस्तेज अकेलापन,
कितना मुश्किल है साथी के बिना जीवन।
और किसी दिन सुनाऊँगी तुम्हें माँ
मेरे अधूरे सपनों की भी एक दास्तान होती है!

तुमने नहीं जाना है माँ!
विदुर विदुषी का खिलखिलाता बचपन!
सवीर की मस्ती, शरारतों में भोलापन!
जब जब ये बढ़ते हैआगे माँ
बढ़ता है तुम्हारा मान,
तुम्हारी भी शान होती है!
क्यूँकि…….
माँ ही तो कुनबे की जान होती है!

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