कुछ तो छूट ही गया!

आज हम अपना बड़ा सा घर छोड़ कर आ गए

पैंतीस सालों के ताने बाने को तोड़ कर आ गए

बहुत कुछ तो ले आयी पर 

छूट गया वहाँ बच्चों का बचपन

रुनझुन क़दमों से खिलता था जो 

छूट गया वो घर का आँगन

कहती थी जो दहलीज़ शाम को

देर हो गयी बिटिया अब आ जा

जहाँ उठी लाडो की डोली

छूट गया अब वो दरवाज़ा

कहीं बिखरे थे हँसी के मोती

और कहीं पर ओस से आँसू

कहीं भूल आईं अनजाने में

नन्हें हाथों की झप्पी का जादू 

“कहींआने जाने का बंधन”

“Maids नहीं मिलने का झंझट”

“कितनी दिक़्क़त बड़े घरों की,”

कह कर मन को समझाती मैं

भूली बिसरी कुछ आवाज़ें

तभी कहीं से आ जाती हैं

“बहुत पढ़ लिया है मैंने माँ 

अब तो खेलने जाने दो ना”

“मैच जीत गए हैं हम माँ

जल्दी से कुछ खाने को दो ना “

बच्चे सदा साथ रहे 

सबके मन में आस रहे

पर आगे बढ़ने के लिए ही तो

वो नए रास्ते तलाश रहे

आशीर्वाद सदा है उन पर

चाहे दूर रहे या पास रहे

कहने को तो बहुत कुछ है

पर मतलब की तो यही बात है

सभी उतार चढ़ाव का स्वागत

जब तक इक दूजे का साथ है 

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