किताब में कोई सूखा गुलाब जैसे या
कोट में पुराना सा सौ का नोट पाया
बहुत सालो के बाद आज
जब मेरे बचपन के दोस्त का फ़ोन आया
बहुत सी बातें थी करनी
कुछ ख़ाली जगहें थी भरनी
स्कूल पार्क झूलों के कितने ही क़िस्से थे
शैतानी और टिफ़िन में भी बराबर के हिस्से थे
पुराने नग़मों को मिल कर फिर दोहराया
जब मेरे बचपन के दोस्त का फ़ोन आया
टीचर की शिकायत पर घर पर हंगामा
मम्मीओं की डाँट पर हमारा माफ़ीनामा
और वो कारनामे जो घर तक पहुँचे ही नहीं
कहीं लड़ कर निबटाए और प्यार से कहीं
उंन नादानियों ने आज फिर बहुत हंसाया
जब मेरे बचपन के दोस्त का फ़ोन आया
ऐसा नहीं कि ज़िन्दगी में अब कोई कमी है
फ़िर क्यों आज आँखो में नमी है
शायद कुछ सर्द जज़्बातों को
भूली हुई यादों ने पिघलाया
जब मेरे बचपन के दोस्त का फ़ोन आया