ख़ाली सा मन!

मन भरा भरा सा है

 और खाली है घर.

 घोसले के कुछ तिनके इधर कुछ उधर.

 आंगन में जो चेहकती थी चिड़ियाँ, 

क्यूँ नहीं आती अब मेरे दर पर.
त्योहारों का मौसम है,
क्यूँ फिर उल्लास नहीं.
ख़्यालों में, उम्मीदों में, ज़िक्रो में है वो,
पर अब मेरे पास नहीं.
परिंदे तो उड़ेंगें
मिले हैं उन्हें नए नए पर.
मन भरा भरा सा है पर खाली है घर.
चमक रहा है घर द्वार सब.,
बस दिल के कोने में यादें जमी है,
यहाँ तो सब कमरे हैं खाली,
जगह की कहाँ कोई कमी है.
कैसे गुनगुनाऊ जब सारे स्वर गए हैं बिखर!
माँ ऑरेंज बर्फी और गुलाब जामुन ज़रूर बनाना,
शरारत में रूठना और फिर मान जाना.
अनार, फूलझरी और चकरी की रोशनी.
अमावस की रात में खिल जाती थीचांदनी.
कैसे इन यादों के पंख दूँ मैं कतर.
मन भरा भरा सा है और खाली है घर!

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