माँ का ख़ुशनुमा पल्लू,
उनके कंधे पर रहता था!
तुम महफ़ूज़ हो यहाँ पर,
वो कानो में कहता था!
उनके कंगन की झनक,
उनकी हँसी की खनक,
बस उनके साथ का एहसास,
कितनी तस्सली देता था!
पर क़भी पूछ नहीं पाई,
क्या जैसी तुमने चाही
मैं वो बेटी बन पाई?
जितना नाज़ है मुझे अपनी पर,
क्या तुमको भी रहता था?
माँ के मैले आँचल में भी,
एक प्यार का दरिया बहता था!

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